5 जुलाई को गुरु पूर्णिमा है। इसे आषाढ़ पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन गुरु की सेवा और पूजा की जाती है। ऐसा कहा और माना जाता है कि गुरु बिन ज्ञान नहीं प्राप्त होता है। अतः जीवन के हर पड़ाव में गुरु का रहना बेहद जरूरी है। गुरु का अभिप्राय ज्ञान होता है। गुरु के सानिध्य रहकर उनकी सेवा और भक्ति करने से व्यक्ति को सद्बुद्धि और शक्ति प्राप्त होती है। साथ ही जीवन का मार्ग प्रशस्त होता है। आइए, गुरु पूर्णिमा का शुभ मुहुर्त, महत्व और पूजा विधि जानते हैं-
गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु का जीवन में बहुत महत्व होता है। गुरु शिष्य के जीवन में व्याप्त अंधकार को मिटाकर प्रकाश फैलाते हैं। धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि जिस तरह व्यक्ति इच्छा प्राप्ति के लिए ईश्वर की भक्ति करता है। ठीक उसी तरह व्यक्ति को जीवन में सफल होने के लिए गुरु की सेवा और भक्ति करनी चाहिए। साथ ही गुरु प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। इस दिन महान ऋषि और गुरु वेदव्यास का जन्म हुआ है। इसलिए गुरु पूर्णिमा आषाढ़ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है।
गुरु पूर्णिमा तिथि
इस दिन प्रातः काल में पूजा का शुभ मुहूर्त है। इसके अतिरिक्त चौघड़िया तिथि के अनुसार, पूजा कर सकते हैं। हिंदी पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा 4 जुलाई को दिन में 11 बजकर 33 मिनट से शुरू होकर 5 जुलाई को 10 बजकर 13 मिनट पर समाप्त होगी।
गुरु पूर्णिमा पूजा विधि
यह दिन हर एक व्यक्ति के लिए है। खासकर विद्या अर्जन करने वाले लोगों के लिए इस दिन अपने गुरु की सेवा और भक्ति कर जीवन में सफल होने का आशीर्वाद जरूर प्राप्त करना चाहिए। साथ ही विद्या की देवी मां शारदे की जरूर पूजा करनी चाहिए।
इस दिन प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नियमित दिनों की तरह पूजा करें। इसके बाद परम पिता परमेश्वर सहित सभी देवी और देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त करें। तत्पश्चात अपने गुरु की सेवा श्रद्धा भाव से करें। संध्याकाल में सामर्थ्य अनुसार दान-दक्षिणा देकर उनसे आशीर्वाद लें।