सनातन धर्म में बहनों और भाइयों के प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन इस वर्ष 3 अगस्त (सोमवार) को है। भाइयों की कलाई पर राखी बांधने के लिए बहनों को सुबह 9 बज कर 51 मिनट तक यानी भद्रा समाप्त होने का इंतजार करना पड़ेगा। हालांकि मकर राशि में चंद्रमा के होने पर भद्रा का निवास पाताल लोक में है, तो मनुष्य लोक में इसका प्रभाव नहीं पडे़गा। पर भद्रा में रक्षासूत्र बांधना शास्त्रसम्मत नहीं होता है। सबसे ज्यादा अशुभ मानी जाती है शनिवार की भद्रा, जिसे वृश्चिकी भद्रा कहते हैं। कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि के चंद्रमा में भद्रा का निवास मनुष्य लोक में रहता है। इसके ठीक उलट मेष, वृष, मिथुन व वृश्चिक राशि के चंद्रमा में भद्रा का निवास स्वर्ग में, तो कन्या, तुला,धनु व मकर राशि के चंद्रमा में भद्रा का निवास पाताल में होता है। मनुष्य लोक वाली भद्रा का तो हर हाल में त्याग कर देना चाहिए।
शिव जी के प्रिय मास श्रावण की पूर्णिमा के दिन अपने विकारों पर, सांसारिक कार्यों में विजय हासिल करने के प्रयासों का शुभारंभ होता है। अगर आप अपने शत्रुओं को परास्त करना चाहते हैं तो वरुण देव की आज अवश्य पूजा करें। भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर बलि राजा के अभिमान को आज ही नष्ट किया था। महाराष्ट्र में नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं। साथ ही, लक्ष्मी जी के पिता समुद्र की पूजा करते हैं। इस दिन से ही राजा दशरथ ने धोखे में मारे गए मातृ-पितृ भक्त पुत्र श्रवण कुमार की पूजा का सर्वत्र प्रचार किया। इस दिन रक्षासूत्र सर्वप्रथम उनको अर्पण किया जाता है।
इस दिन का इतिहास देखें तो देवों और दानवों के युद्ध में जब देवता हारने लगे, तब वे देवराज इंद्र के पास गए। देवताओं को भयभीत देख कर इंद्राणी ने उनके हाथों में रक्षासूत्र बांध दिया। इससे देवताओं का आत्मविश्वास बढ़ा और उन्होंने दानवों पर विजय प्राप्त की। प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के उपदेश की पूर्णाहुति इसी दिन होती थी। वे राजाओं के हाथों में रक्षासूत्र बांधते थे। इसलिए आज भी इस दिन ब्राह्मण अपने यजमानों को रक्षा सूत्र बांधते हैं। रक्षा सूत्र बांधने का मंत्र है- ‘येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबन्धामि मा चल मा चल॥’ मौली बांधने से त्रिदेव- ब्रह्मा, विष्णु और शिव तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती की कृपा प्राप्त होती है। ब्रह्मा की कृपा से कीर्ति, विष्णु की कृपा से रक्षा तथा शिव की कृपा से दुर्गुणों का नाश होता है। इसी प्रकार लक्ष्मी से धन, दुर्गा से शक्ति एवं सरस्वती की कृपा से बुद्धि प्राप्त होती है। आज ही ऋषि तर्पण भी किया जाता है। ऋक्, यजु: साम के स्वाध्यायी अपने-अपने आश्रम अनुसार, अपने-अपने वेद कार्य और क्रिया के अनुकूल काल में यह कार्य पूर्ण करते हैं।