आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष नवमी तिथि को गुप्त नवरात्र के समापन अवसर पर भडली नवमी का त्योहार मनाया जाता है। नवमी तिथि होने के कारण इस दिन गुप्त नवरात्र का समापन होता है। भडली नवमी की तिथि अक्षय तृतीया के समान ही महत्व रखती है। इस तिथि को अबूझ मुहूर्त माना जाता है। शादी-विवाह को लेकर इस तिथि का विशेष महत्व है। इस दिन बिना मुहूर्त देखे विवाह किया जा सकता है। भड़ली नवमी का त्योहार श्रीहरि भगवान विष्णु को समर्पित है।
ज्योतिषविद् कहते हैं कि गुप्त नवरात्र पूर्ण होने के साथ यह स्वयं सिद्ध मुहूर्त है और अबूझ सहालग भी होते हैं। सिद्ध मुहूर्त होने के कारण इस दिन किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए पंचांग शुद्धि देखने की आवश्यकता नहीं होती। सगाई, विवाह संस्कार, नींव पूजन, गृह प्रवेश, व्यापार आरंभ, वाहन खरीदना आदि कार्य इस तिथि पर किए जा सकते हैं। भडली नवमी के दो दिन बाद ही देवशयनी एकादशी है। इस दौरान भगवान श्रीहरि विष्णु चार माह के लिए शयन को चले जाते हैं। इस कारण चार माह तक कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। देवशयनी एकादशी से ही चातुर्मास का आरंभ माना जाता है। देवउठनी एकादशी पर श्रीहरि भगवान विष्णु के जागृत होने पर चातुर्मास संपन्न होता है और सभी तरह के शुभ कार्य शुरू किए जाते हैं।
इस आलेख में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।