200 से अधिक शिक्षाविदों ने PM मोदी को लिखा पत्र

शिक्षाविदों द्वारा चिट्ठी में लिखा गया है कि लेफ्ट विंग एक्टिविस्ट्स की गतिविधियों की वजह से शिक्षण कैंपस में पढ़ाई-लिखाई का काम बाधित होता है।



नई दिल्ली । देश के 200 से अधिक शिक्षाविदों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है। इस चिट्ठी में उन्होंने वामपंथी संगठनों पर शिक्षण संस्थानों में हिंसा फैलाने का आरोप लगाया है। चिट्ठी में लिखा गया है कि लेफ्ट विंग एक्टिविस्ट्स की गतिविधियों की वजह से शिक्षण कैंपस में पढ़ाई-लिखाई का काम बाधित होता है और इससे विश्वविद्यालयों का माहौल खराब हो रहा है। इन शिक्षाविदों ने आरोप लगाया है कि इन ग्रुप्स द्वारा कम उम्र के छात्रों को वैचारिक रूप से प्रभावित किया जा रहा है जिससे नए छात्र पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान नहीं दे पाते हैं। पीएम मोदी को ये पत्र शनिवार को लिखा गया है।


पत्र लिखने वालों में डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर (मध्य प्रदेश) के कुलपति प्रोफेसर आरपी तिवारी, दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एचसीएस राठौर, एनबीए के अध्यक्ष और जीजीएस इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. केके अग्रवाल, आईसीएसएसआर के सचिव वीके मल्होत्रा, दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. पायल मागो, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो सुनील गुप्ता एसपी विश्वविद्यालय, गुजरात के कुलपति डॉ. श्रीश भाई कुलकर्णी शामिल हैं। समाचार एजेंसी एएनआई ने रविवार को इस बात की पुष्टि की कि सभी शिक्षाविदों ने पीएम मोदी को संबोधित पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। शिक्षण संस्थानों में 'लेफ्ट विंग की अराजकता के खिलाफ बयान' शीर्षक से लिखे गए पत्र में कुल 208 अकादमिक विद्वानों के हस्ताक्षर हैं।


पीएम मोदी को लिखे इस पत्र में शिक्षाविदों ने कहा कि हम शिक्षाविदों का समूह शिक्षण संस्थानों में बन रहे माहौल पर अपनी चिंताएं बताना चाहते हैं। हमने यह महसूस किया है कि शिक्षण संस्थानों में शिक्षा सत्र के रोकने और बाधा डालने की कोशिश छात्र राजनीति के नाम पर वामपंथ एक एजेंडे के तहत कर रहा है। अकादमिक विद्वानों ने अपने पत्र में लिखा है कि हमारा मानना है कि छात्र राजनीति के नाम पर अतिवादी वामपंथी अजेंडे को आगे बढ़ाया जा रहा है। हाल ही में जेएनयू से लेकर जामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लेकर जाधवपुर विश्वविद्यालय के माहौल में जिस तरह की गिरावट आई है वह वामपंथियों और लेफ्ट विंग एक्टिविस्ट के एक छोटे समूह की वजह से हुआ है।


इन शिक्षाविदों ने कहा कि इन संस्थानों में वामपंथियों की वजह से पढ़ाई-लिखाई के कामों में बाधा पहुंची है। छोटी उम्र में ही छात्रों को कट्टरपंथी बनाने की कोशिश ना केवल उनके सोचने की क्षमता बल्कि उनकी कौशल को भी प्रभावित कर रही है। इसकी वजह से छात्र ज्ञान और जानकारी की नई सीमाओं को लांघने और खोजने की बजाय छोटी राजनीति में उलझ रहे हैं। विचारधारा के नाम पर अनैतिक राजनीति करके समाज और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खिलाफ असहिष्णुता बढ़ाई जा रही है। इस तरह के प्रयासों से बहस को सीमित करके विश्वविद्यालयों और संस्थानों को दुनिया की नजरों से दूर करने की कोशिश की जा रही है।